दीपावली - 2023

या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी,

                             गम्भीरार्तवनाभिस्तनभरनमिता शुभ्रवस्त्रोत्तरीया ।

या लक्ष्मीर्दिव्यरूपैर्मणिगणखचितैः स्‍वापिता हेमकुम्भैः,

                            सा नित्यं पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमांगल्ययुक्ता।।

दीपावली क्या है ?

दीपावली कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या को मनाया जाने वाला अद्भुत हर्षोल्लास का एक पर्व है |

दीपावली का अर्थ ही है दीप + आवली अर्थात् दीप की कतार या पंक्ति इस दिन सब प्रकाशित करने का विशेष महत्व माना जाता है | यह खुशियों का त्यौहार पूरी दुनिया में मनाया जाता है एवं हमारे सनातन धर्म का यह त्यौहार सम्पूर्ण भारत वर्ष में बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है |इसदिन भगवान गणेश माता लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है 

दीपावली माता लक्ष्मी और भगवान धन्वन्तरी के जन्म से जोड़ा जाता है सामान्य सी बात है अगर हमारे किसी अपने का जन्म अथवा कोई वर्षगाँठ होता तब उस तिथि को हम उत्साह के साथ मंगलकार्य करते है मिष्ठान इत्यादि वितरण करते है उत्सव मनाते है जब मनुष्य मात्र में इतना उत्साह उमंग रहता है तब ये तो साक्षात् भगवान है इनके जन्मोत्सव पर तो पूरी सृष्टि में लोग उत्साहित रहना उनकी पूजन करना स्वाभिविक है | 

दीपावली का रहस्य हमारे पौराणिक ग्रंथो में वर्णित है -

यह त्यौहार ५ दिनों का होता है कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी से लेकर कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीय तक अर्थात धन त्रयोदशी से लेकर नरक चतुर्दशी ,दीपावली ,अन्नकूट ,भाई दूज यह पांच दिनों तक मनाया जाता है और साथ ही यह पञ्च दिवसीय अनुष्ठान के स्वरुप में मनाया जाता है |

पञ्च दिवसीय कार्यक्रम -

इस पांच दिनों में से प्रथम दिन धनत्रयोदशी अर्थात् धनतेरस को भगवान धन्वन्तरी का प्रादुर्भाव होने के चलते इस दिन माता लक्ष्मी के साथ –साथ भगवान धन्वन्तरी का भी पूजन का विशेष महत्व है एवं इस दिन सोने चांदी के बर्तन इत्यादि अनेक नए-नए वस्तु खरीदने की परंपरा है|

उसके पश्चात दुसरे दिन नरक चतुर्दशी को छोटी दीपावली के रूप में मनाया जाता है इस दिन यम की भी पूजा की जाती है |

पुनः तृतीय दिन कार्तिक अमावस्या को दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है | इस दिन माता लक्ष्मी समेत गणेश एवं कुबेर पूजन का महत्व है |

चतुर्थ दिवस यानि दीपावली के बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन अन्नकूट मनाया जाता है इस दिन भगवान गोवर्धन की पूजा की जाती है एवं इस दिन माता अन्नपूर्णा को नाना प्रकार के व्यंजन से भोग लगाया जाता है |

पाँचवा दिन- कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया को भाई दूज मनाया जाता है इस दिन बहन अपने भाई की पूजन कर भगवान से उनकी दीर्घायु की प्रार्थना करती है |

त्रेतायुग से जुडी कथा - 

रामायण और हमारे अनेक पौराणिक ग्रंथो के अनुसार है जब रावण माता सीता जी का हरण कर ले गया, तब भगवान श्रीराम वानरराज सुग्रीव समेत जामवन्तजी एवं हनुमान जी और वानर सेनाओं  के सहयोग से लंका पर विजय प्राप्त किये और विभीषण जी के सहयोग से रावण के प्राणों को हर कर उसे मोक्ष प्रदान किया | तत्पश्चात माता सीता को लेकर अपने राज्य अयोध्या वापस आये थे उस दिन कार्तिक कृष्ण अमावस्या थी अतः इसी अपार हर्ष के कारण प्रजा को आनंद का ठिकाना नहीं रहा और उस दिन पूरी प्रजा भगवान के आगमन के खुशी में दीप जलाया उत्सव मनाया और तभी से कार्तिक अमावस्या को दीपावली के रूप में मनाते है |

दीपावली में भगवान धन्वंतरी का पूजन का महत्व -:

महाभारत और कई पौराणिक कथाओं के अनुसार सतयुग में पहली दीपावली मनाई गई थी, देव और दानवों ने मिलकर जब समुद्र मंथन किया था और समुद्र मंथन से प्राप्त १४ बहु मूल्य रत्नों में से एक भगवान धन्वंतरी जी भी प्रगट हुए वह हाथ में स्वर्ण के कलश में अमृत लेकर भगवान धनवंतरी का प्रादुर्भाव हुआ और इसदिन कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी थी तब भगवान का स्वागत किया गया था | "भगवान धन्वन्तरी आयुर्वेद के जनक है" एवं माता लक्ष्मी का भी समुद्र मंथन से ही प्रादुर्भाव होने के चलते सभी देवता ऋषि माता लक्ष्मी की पूजा की थी और दीप जला कर स्वागत किया था |

पांडवों के घर वापसी -

दीपावली को लेकर एक कथा पांडवों के घर वापस आने को भी है पांडवों को भी वनवास जाना पड़ा था वनवास पूरा करने के पश्चात पांडव घर लौटे उसदिन कार्तिक कृष्ण अमावस्या थी और इसी आनन्द में पूरे नगरवासी नगर में हर्षोल्लास के साथ दीप जलाया और उत्सव मनाया तभी से दीपावली की शुरुआत हुई |

श्री कृष्ण द्वारा नरकासुर का वध -

श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की सहायता से असुर राज नरकासुर को इस धरती से परलोक भेजा था नरकासुर को स्त्री के हाथों मृत्यु होने का श्राप मिला था और कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी को नरकासुर के दुराचार और अत्याचार से सबको मुक्ति दिलाया था एवं नरकासुर के वंदी गृह से सोलह हजार एक सौ स्त्रीयों को मुक्त कर उनको सम्मान दिया और नरकासुर के अत्याचार से मुक्त होने के ख़ुशी में प्रजाजन दीप जला कर दीपोत्सव मनाया गया था |

कृषि समुदाय के लोगों से जुडी रहस्य -

मान्यता है कि इस समय नई फसल की शुरुआत होती है तो कृषि लोग इस दिन धन की देवी लक्ष्मी की और सभी विघ्नों के हर्ता गणेश को नई फसल का भोग  ( प्रसाद ) लगाते हैं और पूजन करते हैं दीपदान करते हैं अपने खुशी का उत्साह का प्रदर्शन करते हैं इसलिए दीपावली के बाद अगले दिन अन्नकूट मनाया जाता है |

दैत्यराज बलि से जुडी कथा -

कई पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब राजा बलि ने तीनों लोको पर विजयी प्राप्त कर अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था और लक्ष्मी समेत सभी देवी-देवताओं को भी बंदी बना लिया था तब सभी देवता भगवान विष्णु के समक्ष उपस्थित हुए और उनसे प्रार्थना किया कि इस परेशानी से उन्हें बाहर निकाले तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर तीन पग में ही पूरी सृष्टि को माप कर राजा बलि को परास्त किया था और सभी देवताओं को राजा बलि के यहां से मुक्ति कराया उसके पश्चात भगवान विष्णु ने राजा बलि से कहा कि तुम मुझसे वरदान मांगो तब राजा बलि ने कहा कि प्रभु मैं तो दाता हूं मैंने आपको तो सब कुछ अपना दान में दे दिया मुझे किसी भी वस्तु की किंचित भी लोभ या आवश्यकता नहीं है फिर भी आप साक्षात नारायण है और नारायण मुझे कुछ देना चाहते हैं तो प्रभु आप से ऐसा प्रार्थना है कि आप मुझे आशीर्वाद दें कि इस दिन माता लक्ष्मी और सभी देवता मेरे बंदी से मुक्त हुए हैं और इस दिन जो भी दीपदान ( दीप प्रज्ज्वलित )करेगा और माता लक्ष्मी की पूजा करेगा उसके घर माता लक्ष्मी का स्थाई निवास रहेगा तब भगवान विष्णु ने तथास्तु कहा और अंतर्धान हो गए तभी से दीपावली के उत्सव पर माता लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है |

दीपावली का शुभ मुहूर्त 2023 -
प्रत्येक वर्ष की भाँती इस वर्ष भी कार्तिक कृष्ण अमावस्या को दीपावली सम्पूर्ण देश में अत्यंत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जायेगा इस वर्ष यह ता.12.11.2023 को है और इस दिन गणेश,लक्ष्मी जी सहित कुबेर इत्यादि देवताओं का भी पूजन होता है, इस दिन प्रत्येक मनुष्य अपने-अपने घर माता लक्ष्मी की पूजन करता है,और आशीर्वाद की कामना करता है दीपावली एक प्रमुख त्यौहार है अतः इसमें भगवान की पूजन शुभ मुहूर्त में ही करनी चाहिए पञ्चांग के अनुसार शुभ मुहूर्त में पूजन करने मात्र से माता लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है |
-: दीपावली पूजन का मुख्यकाल प्रदोष काल होता है जिसमे स्थिर लग्न की प्रधानता होती है और जिसमें स्वाति नक्षत्र का योग भी प्रशस्त है परन्तु इस वर्ष स्वाति नक्षत्र का योग नहीं मिल पा रहा है फिर भी यह इस दिन अत्यंत ही शुभ मुहूर्त मिल रहा है पूजन केलिए अतः इसदिन वृष,सिंह,वृश्चिक या कुम्भ लग्न में ही पूजन करना चाहिए इस दिन वृष लग्न सायं 6:55 से रात्रि 8:51 तक है । जो दीपावली पूजन के लिए उत्तम है। इसके पश्चात् अर्धरात्रि में सिंह लग्न में रात्रि 1:13 से 3:37 तक पूजन का मुहूर्त है और इससे अतिरिक्त जो दिन में करना चाहते है उनके लिए दोपहर 12:33 से 2:19 के मुहूर्त में लक्ष्मी गणेश कुबेर इत्यादि का पूजन किया जायेगा
इस दिन सायं काल में सभी देवताओं धार्मिक स्थलों घर के चौखट इत्यादि सभी स्थानों पर दीपक जलाया जाता है "सायं देवायतनादौदीपदानम्" 
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